शिक्षकों के पढ़ाने के अलावा और कई कार्य , शिक्षा गुणवत्ता हो रही प्रभावित Apart From Teaching Teachers , Many Tasks , Education Quality Is Getting Affected
a2zkhabri.com न्यूज़ रांची - क्या शिक्षक गैरजिम्मेदार है..? क्या बच्चों को पढ़ाने में उनमे कोई उत्साह नहीं है ...? ऐसा झारखण्ड राज्य के वित्त एवं खाद्य मंत्री कह रहे है। हम आज केवल सिर्फ झारखण्ड की हि बात नहीं करते है बल्कि पुरे राज्यों की बात करेंगे। देश में ऐसा कोई राज्य नहीं है जहाँ शिक्षक सिर्फ पढ़ाने का कार्य करते हो। शिक्षकों के कंधे पर पढ़ाई के आलावा कई दर्जनों ऐसे कार्य है जिसे उन्हें नियमित करते रहना पड़ता है। यदि शिक्षक अपने मूल कार्य पढ़ाई के अलावा दूसरे कार्य करते रहेंगे तो ऐसे में शिक्षा गुणवत्ता की बात करना बेईमानी होगी।
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ज्ञात हो कि झारखण्ड के वित्त एवं खाद्य मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव शिक्षकों पर निशाना साध रहे है। शिक्षकों को गैरजिम्मेदार बताने हुए उन्हें शिक्षा गुणवत्ता में आई गिरावट का जिम्मेदार ठहरा रहे है। बल्कि शिक्षा गुणवत्ता में गिरावट के कई कारण है जिनमे शिक्षकों से पढ़ाई के अलावा कई दर्जनों कार्य है जिन्हे शिक्षक पढ़ाई के साथ - साथ कराते आ रहे है।
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सरकार ने उन्हें जानवरों की गिनती से लेकर गांव में राशन के वितरण , स्कूलों में झाड़ू लगाने से लेकर टायलेट साफ करने - कराने की ड्यूटी में झोक रखा है। शिक्षक कहने के लिए शिक्षा विभाग के कर्मचारी है लेकिन उनसे पशुपालन से लेकर खाद्य आपूर्त और स्वास्थ्य से लेकर कल्याण विभाग छोटे बड़े कार्य करते आ रहे है। जब शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़ किसी दूसरे कार्य में लगातार व्यस्त रहेंगे तो ऐसे में कैसे शिक्षा गुणवत्ता आएगी।
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प्राथमिक शिक्षकों का सबसे बुरा हाल - सबसे बुरा हाल प्राथमिक शिक्षकों का है , उन्हें बच्चों को पढ़ाने के साथ - साथ लगभग 40 तरह के रजिस्टर अपडेट करते है। वह अपने आप में तीन से चार घंटे का काम है। जाहिर है शिक्षकों के आधे से ज्यादा वक्त गैर शैक्षणिक कार्यों में लगा रहता है। मीड डे मील के लिए चावल , दाल लाने , उनका हिसाब रखने और स्कूल का भवन निर्माण कराने , छण सीमेंट , जुटाने तक का सारा काम शिक्षकों के भरोसे झोड़ दिया है।
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इन कार्यों में लगती है शिक्षकों की ड्यूटी - चुनाव कार्य, जनगणना कार्य, पशुगणना , आर्थिक सर्वे, राशन कार्ड सत्यापन, बीपीएल सर्वे, एमडीएम, भवन निर्माण, चावल वितरण, एसडीएमआइएस एंट्री, डाटा एंट्री, शिशु गणना, पोलियो उन्मूलन अभियान, फाइलेरिया दवा वितरण, आयरन गोली वितरण, अल्बेंडाजोल गोली वितरण, छात्र वृत्ति, साईकिल वितरण, गणवेश वितरण, कोरोना ड्यूटी, पीडीएस चावल दुकानों की निरिक्षण, बैंक बच्चों का अकाउंट खुलवाना, विद्यालय की रंगाई पोताई कराना , स्कूल की साफ- सफाई कराना, शौचालय की साफ सफाई कराना इसके आलावा और दर्जनों कार्य है जिन्हे शिक्षक पुरे सालभर क्रमशः करते रहते है।
यह सिर्फ झारखण्ड राज्य के शिक्षकों के कार्य नहीं है बल्कि ऐसे ही अन्य राज्यों के भी हाल है। जहाँ शिक्षकों के मूल कार्य पढाई के आलावा कई दर्जनों गैर शैक्षणिक कार्य कराये जाते है। जब शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के आलावा आधे समय अन्य कार्य को देंगे तो स्वाभाविक है बच्चों की शिक्षा गुणवत्ता प्रभावित होगी ही। ऐसे में सिर्फ शिक्षकों को शिक्षा गुणवत्ता हेतु दोष देना कही से न्यायसंगत नहीं है। शिक्षा गुणवत्ता तभी रहेगी जब शिक्षक, बालक, पालक और शासन मिलकर कार्य करेंगे।
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