मृत्यु भोज - मृत्यु भोज समाज में व्याप्त एक बहुत बड़ी सामाजिक कुरुति है। मृत्यु भोज बंद कराने विभिन्न जागरूक समाज हमेशा पहल करते आ रहे है। लेकिन अभी तक व्यापक सफलता हासिल नहीं हो पा रही थी। मृत्यु भोज पर प्रतिबन्ध लगाने को लेकर कई समाजों द्वारा लम्बे समय से अभियान चलाया जा रहा है। इसे कुप्रथा बताकर रोक लगाने की मांग की जा रही थी अब यह मामला शासन / प्रशासन स्तर पर पहुँच गया है।
सामाजिक कुप्रथा का अंत - समाज में व्याप्त इस कुप्रथा का अब अंत होने वाला है और इसकी शुरुआत उदयपुर से हो चुकी है। इस कुप्रथा को बंद कराने के उद्देश्य से इस बार शासन प्रशासन ने कमर कस ली है। इसलिए सरकार ने मृत्यु भोज को बंद कराने एवं आवश्यक कार्यवाही की जिम्मेदार पुलिस कप्तान (पुलिस अधीक्षक) को सौंपी गयी है। इसके लिए राज्य पुलिस महानिदेशक ने जिलों के सभी एसपी को निर्देश जारी किये है।
मृत्युभोज कराने पर क्षेत्रीय पंच, सरपंच एवं पटवारी होंगे जिम्मेदार - शासन के इस नियम को नहीं मामंने वाले एवं इस कुप्रथा को जारी रखने पर सम्बंधित क्षेत्र के पंच , सरपंच एवं पटवारी के ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। किसी भी गांव में मृत्यु भोज कराने पर सम्बंधित व्यक्ति सहित इन जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होगी। मृत्यु भोज अधिनियम 1960 के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी। शासन द्वारा पहली बार पंच, सरपंच एवं पटवारी को पहली बार इस तरह के कार्यों पर रोक लगाने हेतु बड़ी जिम्मेदार दी गयी है।
मृत्यु भोज अधिनियम 1960 के अनुसार होगी कड़ी कार्यवाही- मृत्य भोज पर प्रतिबन्ध को लेकर चित्तौरगढ़ के सामजिक कार्यकर्ता मदन सालवी ओजस्वी लम्बे समय से अभियान चला रहे थे। इस मामले के तहत उनके द्वारा लिखे गए पत्र के बाद पुलिस महकमे के मुखिया पुलिस महानिदेशक ने निर्देश जारी किये है। पुलिस महानिदेशक ने राज्य के सभी एसपी कोनिर्देश दिए है की राज्य के मृत्यु भोज अधिनियम 1960 के अनुसार कड़ाई से पालन सुनिश्चित करे। मृत्यु भोज के लिए अब क्षेत्रीय पंच,सरपंच एवं पटवारी को जिम्मेदार बनाया गया गया है। मृत्यु भोज कराने पर समय रहते अदालत को करनी होगी सूचित ताकि इनके ऊपर तत्काल कार्यवाही की जा सके।
सामाजिक कार्यकर्ता मदन सालवी ने बताया की उन्होंने राज्य के मुख्य न्यायाधीश, मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक को कई पत्र लिखे थे। इस अभियान में इन्होने चित्तौड़गढ़ जिले के बेंगु में पदस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट ब्रजेश पवांर एवं चित्तौड़गढ़ के न्यायाधीश शुशील ओझा से विशेष सहयोग प्राप्त होने की बात कही। जागरूकता के लिए न्यायाधीशों ने समय निकाला एवं उनकी बातों को कई जगह पहुंचाए भी।
राजस्थान बना पहला प्रदेश - इस तरह के कुप्रथा को खत्म करने के उद्देश्य से सरकारी विभाग द्वारा पहली बार आदेश प्रसरित हुआ है। अब तक सामाजिक संगठन ही इन कुप्रथाओं से लड़ते आ रहे थे। शासन द्वारा इस प्रकार का पहल करना वाकई में कबीले तारीफ है। राजस्थान सरकार से सीखते हुए अन्य राज्यों क्या पुरे भारत में इस मृत्यु भोज कुप्रथा को बंद कर देनी चाहिए।
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