सरकारी स्कूलों की बदलेगी व्यवस्था , राज्य शासन ने किया ब्यापक बदलाव Government School Will Be Seen In The New Cleaver , The System Will Change

 स्कूलों की गुणवत्ता सुधार की दिशा में सरकार ने बढ़ाया कदम , प्रभारी और समन्वयको के जिम्मे स्कूल Government School Will Be Seen In The New Cleaver , The System Will Change 


a2zkhabri.com बिलासपुर - सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता सुधार की दिशा में राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। संकुल व्यवस्था में व्यापक बदलाव किया गया है। हाई स्कूल अथवा हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य पदेन संकुल प्रभारी होंगे। उच्च वर्ग शिक्षक अथवा प्रधान पाठक समन्वयक की जिम्मेदारी संभालेंगे। सभी जिलों में लगभग संकुल केंद्रों एवं संकुल समन्वयकों की संख्या दोगुनी हो गई है। 

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समग्र शिक्षा, राज्य परियोजना कार्यालय के प्रबंध संचालक ने इस सम्बन्ध में जिला शिक्षा अधिकारी और जिला मिशन समन्वयक आदेश जारी कर दिए है। 15 फरवरी तक संकुल प्रभारी एवं समन्वयकों को रिपोर्ट करनी है। अभी तक मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक संकुल प्रभारी होते थे। कई जगहों पर प्राथमिक शाला के शिक्षकों को संकुल समन्वयक का जिम्मा दिया जाता था। 

पहले एक संकुल प्रभारी के पास 20 से 25 स्कूलों में व्यवस्था की जिम्मेदारी होती थी। नतीजा प्रभारी एवं समन्वयक के पास काम का बोझ बढ़ जाता था और व्यवस्था नहीं बन पाती थी। अब ऐसा नहीं होगा सरकार के नै व्यवस्था के तहत अब इस पद को प्राचार्य संभालेंगे। अब एक प्रभारी के पास अधिकतम 10 स्कूलों का जिम्मा होगा। अब जिले सहित पुरे प्रदेश में संकुल समन्वयकों और प्रभारियों की संख्या दोगुनी हो गई है। 

प्रभारी समन्वयको के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी - 

1. सामुदायिक सहयोग से शालाओं में संसाधन सुनिश्चित करेंगे। 

2. शैक्षणिक कलेण्डर का समयबद्ध पालन करेंगे। 

3. यू- डाइस व यूडीएस प्रणाली पर आकङो को समय पर देंगे। 

4. शाला प्रबंधन समिति के साथ मिलकर काम करेंगे। 

5. मध्यान्ह भोजन और शाला त्यागी बच्चों को मूल धारा में लाएंगे। 

6. डिजिटल कामकाजों को व्यवस्था से जोड़ने प्रमुख भूमिका निभाएंगे। 

7. तकनिकी रूप से खुद भी अपग्रेड रहेंगे। संकुल समन्वयकों के पास एंड्राइड मोबाइल और कंप्यूटर,लैपटॉप होने अनिवार्य है। 

निर्णय क्षमता की होगी परीक्षा - अधिकारीयों के अनुसार तो मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक या प्राथमिक शिक्षक को जिम्मेदारी मिलने से निर्णय क्षमता, कार्यशैली में कमजोरी दिखाई पड़ती थी। सरकारी योजनाए प्रशिक्षण के बाद भी धरातल पर दिखाई नहीं देता था। निजी स्कूलों के साथ तालमेल अच्छे से नहीं बैठा पाते थे। नई व्यवस्था से निश्चित रूप से स्कूलों में सुधार नजर आएगा। 

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