शिक्षा अधिकारियों की गलती से 40 हजार शिक्षकों की पदोन्नति अधर में Promotion Of 40 Thousand Teachers In Balance Due To Mistake Of Education Officers

पदोन्नति के मामले में शिक्षा विभाग पूरी तरह फेल , अधिकारियों  की लेट लतीफी और गलत नियम कानून से लटकी पदोन्नति Promotion Of 40 Thousand Teachers In Balance Due To Mistake Of Education Officers 

a2zkhabri.com रायपुर - राज्य में स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत जारी पदोन्नति अधर में लटक गई है। मामला कोर्ट में जाने के कारण बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया है। अभी तक के स्थिति के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पदोन्नति का मामला अभी न्यायालय में और लम्बी चलने वाली है। कोर्ट द्वारा तीन चार बार सुनवाई होने के बाद भी विभागीय अधिकारीयों की लापरवाही और सरकार का पदोन्नति के प्रति ध्यान नहीं होने के कारण मामला कोर्ट में लगातार आगे बढ़ता ही जा रहा है। जिस - जिस बिंदु में कोर्ट ने स्टे दिया है उसके जवाब देने में विभागीय अधिकारी और सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है। यही कारण है कि मामला आगे ही बढ़ रहा है। 

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आगामी सुनवाई 10 मई को - पदोन्नति में स्टे के सम्बन्ध में आगामी सुनवाई 10 मई को एक बार फिर होगी। वही इससे पहले शिक्षक संगठन के पदाधिकारियों के बैठक में हाईकोर्ट के सभी सवालों के जवाब कोर्ट में पेश करने का दावा करने वाले अधिकारी एक बार फिर कोर्ट के सुनवाई में फिर फिसड्डी साबित हुए और जवाब ही प्रस्तुत नहीं किये। कोर्ट ने जवाब प्रस्तुत नहीं होने के कारण अगली सुनवाई की तारीख 10 मई को दी है। आगामी सुनवाई में अधिकारीयों का रवैया फिर कही अच्छा नहीं रहा तो पदोन्नति की प्रक्रिया लम्बे समय के लिए टल जाएगी। 

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शिक्षा विभाग पदोन्नति देने में पूरी तरह फ़ैल - शिक्षा विभाग की सबसे बड़ी पदोन्नति प्रक्रिया को विभाग ने ठीक ढंग से नहीं की। पुरे प्रदेश में 40 हजार शिक्षकों की पदोन्नति होनी थी लेकिन डीपीआई और जेडी कार्यालय ने स्पष्ट दिशा निर्देश समय में जारी नहीं किया , जिस कारण से पुरे प्रदेश में एकरूपता का आभाव रहा और इसी कारण से सूची बार - बार विवादित होते गई और कोर्ट ने स्टे लगा दिया। यदि पदोन्नति के शुरुआत में ही डीपीआई द्वारा स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गए होते तो आज 40 हजार शिक्षकों की पदोन्नति हो गई होती। 

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स्टे हटवाने की मांग - प्रदेश के कई शिक्षक संगठन द्वारा स्टे हटवाने की मांग किया जा रहा है लेकिन अधिकारी कोर्ट को जवाब देने में ही विफल हो जा रहे है। ज्ञात हो कि राज्य सरकार ने वन टाइम रेलेक्शेशन के तहत 5 वर्ष के बजाय तीन वर्ष में ही पदोन्नति दे रही है। लेकिन विभागीय अधिकारीयों की लापरवाही के कारण पदोन्नति कोर्ट में जाकर लटक गई है। सहायक शिक्षक की प्राथमिक प्रधान पाठक और मिडिल स्कूल के शिक्षक के पदों में पदोन्नति हो रही थी वही मिडिल स्कूल शिक्षक की मिडिल प्रधान पाठक के पदों में पदोन्नति हो रही थी। 

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शिक्षकों में आक्रोश - 20 - 22 सालों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे शिक्षकों को राज्य सरकार संविलियन के बाद 5 वर्ष के बजाय 3 वर्ष में पदोन्नति दे रही थी। प्रदेश के हजारों शिक्षकों को पदोन्नति पाने का ख़ुशी साफ झलक रही थी , लेकिन नियमों में एकरूपता नहीं होने के कारण कई शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी जिससे हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया। पदोन्नति प्रक्रिया में विभागीय अधिकारीयों की उदासीनता और लापरवाही के कारण शिक्षकों के उम्मीद टूट गए। हाईकोर्ट में सरकार के तरफ से अधिकारीयों के द्वारा जवाब प्रस्तुत नहीं करने और स्टे नहीं हटाने से राज्य के लाखों शिक्षकों में भारी आक्रोश है। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर तत्काल संज्ञान में लेते हुए पदोन्नति की प्रक्रिया यथाशीघ्र प्रारम्भ करवाए। 

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